फिरसे जीने दो – कविता (firse jine do Hindi poem)
प्रतीक्षा की बहुत अब तक, और स्वप्न देखे ना जाने कितने! प्रेम की ये प्रतिध्वनि, तुम्हारी मुखाकृति का वो प्रतिविम्ब आज भी ह्रदय में मेरे सुसज्जित हैं, यथावत। किन्तु अब, जब पुनः सामने लाया तुम्हें मेरे प्रारब्ध, तब, और विलम्ब…