एक बरस निकल गया – Hindi poem on love’s journey
कुछ तो था कहीं न कहीं अधूरा मुझमें, और शायद तुम में भी। वर्षों की तन्हाई, एक लम्बी जुदाई, अलग-अलग राहों पे अपने-अपने सफर, अनजान, खोये अपने जीवन में हम-तुम कुछ तो हुआ तुम्हें और फिर मुझे भी की…
कुछ तो था कहीं न कहीं अधूरा मुझमें, और शायद तुम में भी। वर्षों की तन्हाई, एक लम्बी जुदाई, अलग-अलग राहों पे अपने-अपने सफर, अनजान, खोये अपने जीवन में हम-तुम कुछ तो हुआ तुम्हें और फिर मुझे भी की…
The street lamp emits white and cold light tonight, as usual. It's 2 AM. Dogs bark and tear the breast of silent street, like every other night. I explore the corridor occasionally. Either happiness or sadness embraces my heart…
अब कौन कहाँ है? किसे देखूं? प्रश्न किससे करूँ? जख्म हरा है भर जाये शायद, आज कल, महीनों या वर्षों में। पर कौन होगा अब सम्हालने मेरी बिखरती उम्मीदों को? कौन समझेगा मेरे सपनों को? याद है मुझे (तुम्हें…
That helpless memory of helpless me and you too, helpless and just nothing could we do about it when we had to exit our dreamy world and embrace the rotten garden; yes, once again! for us both, forever
His or her? He or she? Wounds, broken bones, fired skulls, pieces of belly, legs and chopped hands; ah! a superpower won the war. a poem by Alok Mishra
Why should I stop this ever-unsung tune of warmth of this strange coldness that brings our love closer when I hold you just beneath my breath and your lips give salvation to mine and properly, carefully enshrine the bodies which…
Life in me, at times, fears the life in you. Though I do surmise but you can find it true for obvious reasons. You have life; I have too. Still, life in me fears the life in you. by…
कवि हूँ या नहीं मैं दुनिया बाद में निर्णय कर ले पर मेरी कविताओं की तो आत्मा तुम हो शब्द मेरे भले ही उभरते कागजों पे हों एक-एक शब्द की वासना तुम हो तुम हो तो मैं हूँ और…
Honestly, when was I last seen? Heard? Vacant ecstasy shallow joy emptiness stuffed; when did I last feel? Eternity lamb shepherd flow reel. Who cares what! by Alok Mishra
देखा तुम्हें मैंने, फिरसे... फिरसे देखा तुम्हें आज मैंने जब आके तुम सुबह-सुबह मेरे पास बैठी और भींगे बालों से टपकती वो दो-चार बूंदें छू गयी फिरसे शरीर के अंदर छुपी मेरी आत्मा को। .. देखा मैंने फिर आँखों में…