A mere cosmic mistake? Nah! I must be a sculpture by some seasoned…
फिर चला हूँ अपने पथ पर… Hindi Poem
मैं चला था
अपने पथ पर, गंतव्य की खोज में
निकला था।
मुड़ा फिर, अचानक,
हँसा, रोया।
फिर मुड़ा हूँ अभी,
पड़ाव का अंत!
फिर चला हूँ
अपने पथ पर
और बिना मुड़े
अब पहुँचना है,
भाग्य-निहित गंतव्य तलाशना है
मुझे!
a poem in Hindi by Alok Mishra
This Post Has 0 Comments