A mere cosmic mistake? Nah! I must be a sculpture by some seasoned…
पथ पर जो चलो तुम पथिक – Motivational Poem
पथ पर जो चलो तुम पथिक,
एक-एक पग में अडिग विश्वास रखो।
चलो, तो स्वयं चलो और
भाग्य से पृथक, अपने कर्मों को सजग करो।
प्रवाह में विचलित
वो टूटी टहनी न बनो
जो वहीँ तक जाएगी जहाँ नदी ले जाये!
अपने अस्तित्व का बोध करो,
स्वयं अपना भाग्य रचो।
पथ पर जो चलो तुम पथिक,
एक-एक पग में अडिग विश्वास रखो।
भूभाग के अंत में क्या है?
जलाशयों की सिमा कहाँ है?
नभ का विन्यास कहाँ तक
और ऊर्जा अनंत जहाँ है;
पहुँच सको जो तुम वहाँ तक, हे पथिक
भ्रमित न हो – ये है क्षितिज।
और अभी है बाकि पथ में,
बैठे बिना मनोरथ के रथ में –
गतिशील रहो – गतिमान रहो।
पथ पर जो चलो तुम पथिक,
एक-एक पग में अडिग विश्वास रखो।
a poem by Alok Mishra
kavita me bahut badi bat kahi gayi hai, Alok ji. Shayad mere jivan se mel khati hai apki ye rachna.
Good poem, It motivated me. So, thanks to you sir
I am glad you liked it, sir!