An artist’s chase – seeking you, a poem
Further I went, farther you seemed from my reach. Chasing your impressions on the beach, bench in the park or the empty corners in my library – I could (not) see; I wasn't seeing at all! And you, like…
Further I went, farther you seemed from my reach. Chasing your impressions on the beach, bench in the park or the empty corners in my library – I could (not) see; I wasn't seeing at all! And you, like…
आवेग-प्रफुल्लित, आनन्दित, असिम और अथाह, अनंत, अनवरत, आह्लादित सागर की उठती-गिरती लहरें यूँ ही आती-जाती रहती हैं - सागर में और मेरे मन में भी। नित्य-नवीन, नव-स्फुटित, निर्मल, नयन-आलोकित, निरंतर निशा-शीतल सी तुम्हारी छवि मेरे ह्रदय-निकेतन में यदा-कदा आती-जाती…
प्रश्न और कठिन प्रश्न, उत्तर या निरुत्तर, समता या विषमता, गहराई या ऊंचाई, सुःख और संताप - प्रिये, तुम्हारे चकोर-चक्षुओँ के लिए मैं एक चन्द्रमा अपने प्रयत्नों से अवश्य संवारूँगा!
You are the life that I lived And rest of it was a history I never wrote nor read Shall we ever meet again? I believe that would ease the pain And let me and you live That life…
मेरे स्वप्नों को वसंत-स्वप्न के बाहर प्रेम-सत्य की धरा पर, कुछ ऐसे तुमने उतारा है, प्रिये, मानो जीवंत हो गए हों पुनः वो सारे पुष्प जो मुरझाये से थे रेतीले सागर के गहराई में, पीड़ित,वंचित और उपेक्षित से। छूकर प्यार…
That helpless memory of helpless me and you too, helpless and just nothing could we do about it when we had to exit our dreamy world and embrace the rotten garden; yes, once again! for us both, forever
Why should I stop this ever-unsung tune of warmth of this strange coldness that brings our love closer when I hold you just beneath my breath and your lips give salvation to mine and properly, carefully enshrine the bodies which…
कवि हूँ या नहीं मैं दुनिया बाद में निर्णय कर ले पर मेरी कविताओं की तो आत्मा तुम हो शब्द मेरे भले ही उभरते कागजों पे हों एक-एक शब्द की वासना तुम हो तुम हो तो मैं हूँ और…
देखा तुम्हें मैंने, फिरसे... फिरसे देखा तुम्हें आज मैंने जब आके तुम सुबह-सुबह मेरे पास बैठी और भींगे बालों से टपकती वो दो-चार बूंदें छू गयी फिरसे शरीर के अंदर छुपी मेरी आत्मा को। .. देखा मैंने फिर आँखों में…
काश वो वक्त ठहर जाता और मैं समेट लेता सारी खुशियाँ जो लायी थी मेरे चेहरे पे तुम्हारे चेहरे की एक झलक ने! दिन गुजरे और महीने और फिर साल साल दर साल बस निकलते गये मानो जैसे सबने ठान…