मेरे स्वप्नों को वसंत-स्वप्न के बाहर प्रेम-सत्य की धरा पर, कुछ ऐसे तुमने उतारा है,…
फिरसे एक महाभारत अब ठन जाने दो! (a poem in the memory of Pulwama martyrs)
The Episode of Pulwama Terror Attack
फिर से
निकलीं कुछ अर्थियां हैं
उसी रास्ते,
जिस रास्ते कुछ गये थे
शायद पिछले माह ही
और फिर जायेंगे कुछ
किसी दिन और सही।
उदित नहीं हुए होंगे कुछ सूर्य फिर कभी
और कुछ ऑंखें नहीं देखेंगी चंद्र-प्रभा
आने वाली पूर्णिमा की।
पिता की छाती और माता का आँचल …
पुत्रों की निश्छल अश्रु-नयनों से
अर्धांगिनियों की पोंछ रहा मांगें अब जल।
The Expectation of the Nation
कब आएगा वो कल?
कब जागेगी हमारी आत्मा?
अब और कितने पल?
कब जानेंगे हम शत्रुओं को?
और कितने वीर शवों को उठाएगा अब देव-स्थल?
और कितना रुदन-क्रंदन?
और कितने प्रस्ताव अब?
और कितने वीरों का जीवन?
की भड़केगीअब ये आग कब?
दीपक की लौ मुरझाने लगी अब
हर शाम तूफानों से टकराके;
अब तो मशालें जला लो
सीने की अपनी ज्वालाओं के!
The Message from the Land of Sages and the Land of Mahabharata!
हाँ हम विश्वगुरु हैं पर
तलवार चलाना नहीं भूले,
अतिथियों को जीवन देने वाले हैं
शत्रु-प्राण लिवाना नहीं भूले!
अब तो समर की वेला है
जागो शोक की निद्रा तोड़,
पहचानो अपने परिजनों को
लाओ ब्रह्मपुत्र की धारा मोड़!
रणभूमि में समर होता है पार्थ
यही है गीता का यथार्थ –
समझौते के दिन बीत गए
अब गांडीव की गरिमा करो चरितार्थ।
जयघोष करो,
विजयनाद की हो अब तैयारी;
होने दो महाध्वनि पांचजन्य की,
बजाओ देवदत्त प्रलयकारी!
प्रतिकार करो शत्रुदल का,
कुचलो मानवता के हत्यारों को;
कोई मोल नहीं उस जीवन का
जो विसराये शहस्त्र उपकारों को।
होने दो महायुद्ध की हमने
महाभारत भी देखा है,
किन्तु जो देखे कोई भारत को
बतला दो कहाँ पे लक्ष्मण रेखा है।
भीम बनो, रणचंडी को भी जग जाने दो।
थरथराये काल भी देखके, अब वो समर मच जाने दो!
अभिमन्यु-नाद करो शत्रुदल में
हिमालय को भी पिघल जाने दो,
बैठी है यहाँ सहस्त्र द्रौपदीयाँ केश खोले
अब एक रक्त-गंगा भी बह जाने दो!
हाँ करो महाध्वनि पांचजन्य की
फिर से एक महाभारत अब ठन जाने दो!
I admire your writing skills Alok. I have been following your poems for a long time now. You are maturing with time. Great to read this flow of emotions of all hues and colours! Rest in Peace those who lay their lives for us!
Dil khush ho gaya ye padhke Alok ji! bahut hi badhiya likha hai apne aur is kavita ne mano sabke man ki baten kah di hon!