skip to Main Content

फिरसे जीने दो – कविता (firse jine do Hindi poem)

Firse jine do kavita Hindi Alok

प्रतीक्षा की बहुत अब तक,
और स्वप्न देखे ना जाने कितने!
प्रेम की ये प्रतिध्वनि,
तुम्हारी मुखाकृति का वो प्रतिविम्ब
आज भी ह्रदय में मेरे सुसज्जित हैं, यथावत।
किन्तु अब, जब
पुनः सामने लाया तुम्हें मेरे प्रारब्ध,
तब,
और विलम्ब न होने दो!
सुनो,

थोड़ा तुम बोलो,
कुछ मैं भी कहता हूँ।
खुल जाने दो केश अपने,
मैं पवन के साथ बहता हूँ।
और हाथ में दो मेरे तुम अपना हाथ,
ले चलता हूँ तुम्हें मैं अपने साथ
वैसी जगह जहाँ हम होंगे
और बस हम –
मैं और तुम।

तुम्हारी आँखों में झाँकने दो;
तुम्हारे अधरों का स्पर्श अब करने दो।
जी लिया बहुत मैं तुमसे दूर रहके,
अब अपने आलिंगन में कुछ ऐसे मरने दो
की जीने की आकांक्षा फिर से जाग उठे!

 

alok mishra

Alok Mishra

First and foremost a poet, Alok Mishra is an author next. Apart from these credentials, he is founder & Editor-in-Chief of Ashvamegh, an international literary magazine and also the founder of BookBoys PR, a company which helps writers brand themselves and promote their books. On this blog, Alok mostly writes about literary topics which are helpful for literature students and their teachers. He also shares his poems; personal thoughts and book reviews.

This Post Has 0 Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top
Search