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My Poetic Angst Alok Mishra poem
प्रेम, तुम, मैं और हम…
22nd December 2018

प्रेम, तुम, मैं और हम…

मेरे स्वप्नों को वसंत-स्वप्न के बाहर प्रेम-सत्य की धरा पर, कुछ ऐसे तुमने उतारा है, प्रिये, मानो जीवंत हो गए हों पुनः वो सारे पुष्प जो मुरझाये से थे रेतीले सागर के गहराई में, पीड़ित,वंचित और उपेक्षित से। छूकर प्यार…

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