Main – A Hindi Poem
बस अब डूबता ही समझ लो मुझे भी की लहरों से टकराने का अब बस मन नहीं। बहुत खुशनसीब था मैं की ज़िन्दगी मिली की अब मर जाने का भी खास गम नहीं।। हँस लिये, रो लिये दो-चार पुष्प हिस्से के…
बस अब डूबता ही समझ लो मुझे भी की लहरों से टकराने का अब बस मन नहीं। बहुत खुशनसीब था मैं की ज़िन्दगी मिली की अब मर जाने का भी खास गम नहीं।। हँस लिये, रो लिये दो-चार पुष्प हिस्से के…
काश की हमने समंदर से यूँ किनारा न किया होता, और बढ़ाई न होती साहिलों से दोस्ती अपनी, फिर आज हममें भी लहरों की रवानी होती। पर करते भी क्या जब मौजों को ये मुनासिब न था? सितम करते हैं…
बिखरे पते, सूखे वन-उपवन, प्यासे जलाशय, व्याकुल मानव मन... मैं वहाँ भी था! जाने कितने दुःशासन, कितने महाभारत समर और कितनी द्रौपदियों के चीर हरण, हाँ, मैं वहाँ भी था! खिले वसंत की अरुणाई, मानो संसार के मुख मंडल पे…
जल श्वानों के शौक हैं तैराकी मस्ती जल के सैलाबों में, यहाँ थकती है माँ कि छाती, बढती है वो निरंतर बिना बैठे और सुस्ताती | लिये गगरी वो निकल पड़ी खाली पैर बालू के चादर पे, हे नभ…
Hindi Poem to all those who are supporting the anti-national activities in JNU under the camouflage of 'freedom of speech'. देशद्रोहियों को समर्पित एक कविता कवि - आलोक मिश्रा माँ भारती की पीड़ा ये कैसी आजादी? by - Alok Mishra…