skip to Main Content

मैं आलोक हूँ | कविता – Hindi Poem

अब जाके टुटा मेरा सपना
और मिले आमने-सामने
सारे
जिन्हें मैंने माना था
कभी पराया और अपना।

राह बहुत उज्जवल थी
चला था जब मैं
देख मंजिल को सामने
साहसी क़दमों के साथ
बस
कुछ पग चलके
सफलता की शर्माती आलिंगन में
खुद को ढालने।

सपना टुटा
राह भी छूटा
पर,
हाँ पर मैं
अभी भी नहीं हूँ टुटा

राह नयी बनाऊंगा
नए अपनों के सामने
फिर से खुद को पाउँगा
क्यूंकि देख पाता हूँ मंजिल को
अब भी थोड़ी दूर स्वयं से
वैसे ही मुस्काते
जैसे मेरी पुरानी दुनिया से
सहसा ही दिख जाती थी

वही मंजिल

बस राह ही तो नयी है
कुछ लोग
नहीं होंगे;
जो नहीं थे
वो होंगे

पर मेरा अस्तित्व
वही होगा

जो कल था

जो कल रहेगा

अडिग हूँ मैं
अंधकार में उज्जवल अलोक हूँ मैं!

Alok Mishra

First and foremost a poet, Alok Mishra is an author next. Apart from these credentials, he is founder & Editor-in-Chief of Ashvamegh, an international literary magazine and also the founder of BookBoys PR, a company which helps writers brand themselves and promote their books. On this blog, Alok mostly writes about literary topics which are helpful for literature students and their teachers. He also shares his poems; personal thoughts and book reviews.

This Post Has 4 Comments

  1. अडिग हूँ मैं
    अंधकार में उज्जवल अलोक हूँ मैं!

    wah! Kya bat kahi hai! Upma bhi di to kaisi! Ek panth aur do kaj ka ujjwal sakshya alok ji! i am truly impressed

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top
Search