Kash ek Din: Hindi Poem
आजाद मैं हूँ स्वतंत्र तुम भी हो किसी परिणाम, किसी कल से कोई अनुराग, कोई भय भी नहीं। पर कुछ तो है कहीं विचारों, भावनाओं के किसी कोने में सही जो जोड़ती है मुझे तुम से और तुम्हें मुझ…
आजाद मैं हूँ स्वतंत्र तुम भी हो किसी परिणाम, किसी कल से कोई अनुराग, कोई भय भी नहीं। पर कुछ तो है कहीं विचारों, भावनाओं के किसी कोने में सही जो जोड़ती है मुझे तुम से और तुम्हें मुझ…
वो खास पल भी और घड़ियाँ भारीपन के बस ऐसे ही निकल से गये जैसे रेत हाथों से और पतझड़ में वृक्ष से पत्ते। दिन और रात की आँख-मिचौनी, सूनेपन और अपनेपन की बीच का वो फासला, 'मैं' और…
जाने क्यूँ ये शब्द मेरे व्याकुल हैं तुम्हारे सान्निध्य को, एक बार फिर से? तुमने ही तो ठुकराया था इन्हें, अपनी ख़ामोशी से जब मैंने पूछे थे कुछ सवाल। मैं तो शायद समझ भी लूँ अपनी विवशता और मौन…