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Awara: A Hindi Poem

Awara a poem in Hindi by Alok Mishra

आवारा

हकीकत की जब कल्पना नहीं कर पाता हूँ
फिर मैं मजबूर हो जाता हूँ
इच्छित संसार के स्वप्नों में विचरण करने को
स्वछन्द
आवारा

रोक-टोक मुझे पसंद नहीं
ना ही किसी ने की है अब तक
पर हाँ,
खुद से सवाल पूछे थे मैंने
लगभग हर कदम पर
की क्यों मैं होना चाहता हूँ
स्वछन्द
आवारा

कुछ धुंधली सी तस्वीर है
पर यादें पक्की हैं मेरे अस्तित्व के पटल पे
वही था शायद
जिसके विचारों की आवारगी ने बनाया मुझे
स्वछन्द
आवारा

मैंने तो स्वीकार कर ली थी हार अपनी
छोड़ ही दी थी सुननी
मैंने तो पुकार अपनी

कुछ दिन ही सही
भीड़ रही थी मगर
उस राह पे,
हमराही भी थे कुछ
पर निकल गए कुछ आगे जूनून में
और पीछे छूटे कुछ सुकून में
मैंने बस चलता रहा
स्वछन्द
आवारा

या तो हकीकत एक स्वप्न है
या स्वप्न ही हकीकत
जीना तो है अब बस ऐसे ही
स्वछन्द
आवारा

 

For those who cannot understand Hindi:

in short, life is too short – live it to the full! I have decided to live it by myself… independent and worry-free. Honestly, I cannot translate ‘awara’ in English! Let the poetry be local this time. :)

Alok Mishra

First and foremost a poet, Alok Mishra is an author next. Apart from these credentials, he is founder & Editor-in-Chief of Ashvamegh, an international literary magazine and also the founder of BookBoys PR, a company which helps writers brand themselves and promote their books. On this blog, Alok mostly writes about literary topics which are helpful for literature students and their teachers. He also shares his poems; personal thoughts and book reviews.

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