मैं चला था
अपने पथ पर, गंतव्य की खोज में
निकला था।
मुड़ा फिर, अचानक,
हँसा, रोया।
फिर मुड़ा हूँ अभी,
पड़ाव का अंत!
फिर चला हूँ
अपने पथ पर
और बिना मुड़े
अब पहुँचना है,
भाग्य-निहित गंतव्य तलाशना है
मुझे!
a poem in Hindi by Alok Mishra