Alok Mishra

एक बरस निकल गया – Hindi poem on love’s journey

one year of love poem

 

कुछ तो था कहीं न कहीं
अधूरा
मुझमें, और शायद
तुम में भी।

वर्षों की तन्हाई,
एक लम्बी जुदाई,
अलग-अलग राहों पे
अपने-अपने सफर,
अनजान, खोये अपने जीवन में
हम-तुम

कुछ तो हुआ
तुम्हें
और फिर मुझे भी

की रुकी तुम
फिर से उसी मोड़ पे
और पुकारा मुझे
फिर से

गहराई थी, एक ठहराव सा
तुम्हारी आवाज में,
मानो वर्षों की कहानियाँ
कह दी हो तुमने
एक लम्हें में!

(क्या सच है ये?
क्या एक लम्हें में प्यार हो जाता है?
या फिर प्रेम वर्षों की धरातल पे
तैयार हुआ वो पौधा है
जिसकी छाँव में हम सुकून पाते हैं
उम्र भर?)

पुकारा तुमने
मैं आया।
हम मिले;
और हम मिल गए
जैसे वर्षों से व्याकुल मरुभूमि
वर्षा की पहली बूंदों में मिल जाती है!

क्या इन्तेजार था तुम्हें भी?
क्या प्रतीक्षा के क्षण
गिन रहा था मेरा भी मन?

क्या वाणी मिल गयी हमारे वर्षों से मौन कंठों को?
क्या पंख मिल गये हमारे आतुर कदमों को?

चलते-रुकते, बोलते-सुनते, रूठते-मनाते
आ गये हम यहाँ तक – एक वर्ष हुए पुरे!

ठण्ड के मुरझाये चक्षुओं से वसंत की हरी बहारों तक,
गर्मी से अकुलाये रस्तों से ऊँचे पहाड़ों तक,
वर्षा से नहाये विस्तारों से इतिहास के उर्ध्वाधारों तक –
हर जगह चले कदम हमारे
बिना थके, बिना रुके।

पर एक बात कहूं?
कहने दो आज।
जो नया मिला है ये आयाम जीवन को,
खुले हैं जो रास्ते नये
और मिली है जो एक मंजिल नयी,
निहार सकता हूँ जहाँ से गगन को
और उसमे तैरते चाँद को –
सब बस तुमसे ही तो है!
अभी तो बस एक पल गुजरा है
कितनी शामों को
अभी रातों से
और रातों को अनगिनत अरूणोदयों से
मिलना है अभी…

आओ, शुरू करते हैं
ये यात्रा – जहाँ हर कदम मंजिल है!

 

Dedicated to M… as ever!
Love has no beginning and no end; everything is in our heart. We just happen to walk. It’s a journey infinite. Thanks for being with me, M!

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