विपक्ष के शोर और सत्तापक्ष की गर्जन,
झुलसते मेघ और ठिठुरती धूप,
पिघलते हिम और हिम-मग्न होता लावा,
गतिमान पृथ्वी और अनंत आकाश
साक्षी हैं इनके प्रताप के
जिनके सिंह समान अडिग और
अविरल साहस से समग्र संसार
हतप्रभ और अचंभित है –
यही तो हैं, यही तो हैं
हमारी अमूल्य स्वतंत्रता के निःस्वार्थ प्रहरी!
हर बाण के घाव से
जिनकी चौड़ी छाती,
शत्रुओं के इतिहास से
गहरी जिनकी बलिदानों की थाती,
आओ, आओ की तिरंगे में लिपट के
फिर से कोई शव आया है,
फिर किसी कायर ने
धोखे से घात लगाया है;
प्रणाम करो इस भारत-पुत्र को
जो अपनी मष्तक माँ को समर्पित कर आया है!
हाँ, हर्षो-उल्लास में हम स्वतंत्रता के गीत गायें;
नभ की चीर के छाती, मेघों से अभिनन्दन वर्षा करवायें;
किन्तु हम उनका समरण तो कर लें
जो किंचित कल आयें ना आयें …