Alok Mishra

मैं आलोक हूँ | कविता – Hindi Poem

Alok Hun Main poem by Alok Mishra

अब जाके टुटा मेरा सपना
और मिले आमने-सामने
सारे
जिन्हें मैंने माना था
कभी पराया और अपना।

राह बहुत उज्जवल थी
चला था जब मैं
देख मंजिल को सामने
साहसी क़दमों के साथ
बस
कुछ पग चलके
सफलता की शर्माती आलिंगन में
खुद को ढालने।

सपना टुटा
राह भी छूटा
पर,
हाँ पर मैं
अभी भी नहीं हूँ टुटा

राह नयी बनाऊंगा
नए अपनों के सामने
फिर से खुद को पाउँगा
क्यूंकि देख पाता हूँ मंजिल को
अब भी थोड़ी दूर स्वयं से
वैसे ही मुस्काते
जैसे मेरी पुरानी दुनिया से
सहसा ही दिख जाती थी

वही मंजिल

बस राह ही तो नयी है
कुछ लोग
नहीं होंगे;
जो नहीं थे
वो होंगे

पर मेरा अस्तित्व
वही होगा

जो कल था

जो कल रहेगा

अडिग हूँ मैं
अंधकार में उज्जवल अलोक हूँ मैं!

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