जल
श्वानों के शौक हैं तैराकी
मस्ती जल के सैलाबों में,
यहाँ थकती है माँ कि छाती,
बढती है वो निरंतर बिना बैठे और सुस्ताती |
लिये गगरी वो निकल पड़ी
खाली पैर बालू के चादर पे,
हे नभ इन्हें क्षमा कर दे
माँ कि ममता को तो आदर दे !
बातें होतीं बड़ी बड़ी
यहाँ बूंदों को लोग तरसते हैं,
यहाँ अश्रु पड़ते हैं पिने,
वहाँ फुहारों में वो हँसते हैं |
तपती गर्मी सूरज कि
और क़दमों के निचे रेगिस्तान,
देखो खोल के ऑंखें सब
कैसे तपता है हिंदुस्तान
एक गागर पानी पाने को,
और वहाँ पे लाखों जलमीनार हैं
एक अदा पे लुट जाने को !
राजस्थान के मरुभूमि में रहने वाली उन लाखों महिलाओं को समर्पित जो शायद ही समझ पायीं होंगी कि इतने साल गुजर गए सता अंग्रेजों के हाथ से हमारे नेताओं के हाथ में आये हुए | आज हमारे यहाँ बहुत से लोग हैं जो दावे तो बहुत बड़े बड़े करते हैं पर उनमे इतना पुरुषार्थ शायद ही है जो इनकी किस्मत को बदल सके | अपील है लोगों से कि आगे आयें और कुछ सोचें, फिर जल्दी से करें, कहीं ऐसा ना हो कि जैसे 70 साल गुजर गए वैसे ही और गुजर जाएँ !
The women of Rajasthan who walk endlessly for water are still in dilemma… whether we are independent of we are still in the hands of those British… is this government working for us or simply enslaving us? There are many questions that we need to ask ourselves. How long will people in India suffer for ‘drinking water’? How long will those women bear the agony? Let’s do something; let’s work together.