पधारो प्रभु! हे मनोहर!
चित जीते आपहु युग विगत,
अब जीते आपहु चिन्ह,
जनम जो लेही, कौशल्या-खेली,
सिया संग वन-उपवन धावे;
हे प्रभु, अब पुनः विराजो,
आओ अयोध्या अब भूल विसारो,
आपही अब तो आश दिखावो!
निष्प्राण, असहाय, दीन-हीन
आपन भक्त अब पार लगावो।
चन्द्रमुख, कमलनयन, सहज प्रभु – विनय।
धनी-दरिद्र, सुखी-दुःखी, राजा-रंक सब संत कहे –
सियावर रामचंद्र की जय!
poem by Alok Mishra
4:00 AM, IST
The morning which saw the day of grand celebration and a day which will be immortalised in the history of India as a day that saw the victory of Indianness, Indian civilisation and Indian ethos over the evil-eyed invasion of barbarians and inhuman invaders who looted India for many centuries!
जय श्री राम!
JAI SRI RAM!