जाने क्यूँ ये शब्द मेरे
व्याकुल हैं तुम्हारे सान्निध्य को,
एक बार फिर से?
तुमने ही तो
ठुकराया था इन्हें, अपनी ख़ामोशी से
जब मैंने पूछे थे कुछ सवाल।
मैं तो शायद समझ भी लूँ
अपनी विवशता और मौन हो जाऊँ फिरसे
पर ये शब्द मेरे तो बंध नहीं सकते
किसी मानव बंधन में!
स्वतंत्र हैं
स्वाधीन थे
स्वाभिमानी ही रहेंगे
और पिरोते रहेंगे एक एक करके
कविताएँ
कल
परसो
हर रोज …
(for non-Hindi readers)
These words of mine!
Restless are these once more
to have you in sight.
It was you
who rejected, with your silence
when I asked the questions.
I might understand my helplessness;
might explore my silence once more. but
these words of mine are above
the humane
are free;
were independent;
would remain proud
and wreathing one by one
the poems
tomorrow
day after tomorrow
everyday…